लोकोक्तियाँ लोक जीवन के दीर्घकालीन अनुभव का समृद्ध कोश होती हैं। लाेकोक्तियों में लोक जीवन के विविध अनुभव समाहित होते हैं, इसलिए वे बहुत विस्तृत तथ्य और सत्य को कम से कम शब्दों में प्रभावाेत्पादक ढंग से सहज ही व्यक्त कर देती हैं।
वे कथन, जो जनजीवन में (लोक जीवन में) दीर्घकालीन अनुभव के उपरान्त, किसी विशिष्ट अर्थ और परिस्थिति में प्रयुक्त होने लगते हैं, उन्हें कहावतें या लोकोक्तियां कहते हैं।
लोकोक्ति और मुहावरो में समानता- असमानता
समानता
- मुहावरों की भाँति कहावतें भी भाषा को रोचक व प्रभावोत्पादक बनाती हैं।
- मुहावरे व कहावतें दोनों ही साधरण अर्थ से भिन्न विलक्षण अर्थ का बोध कराते हैं।
असमानता
- लोकोक्ति वाक्य है जबकि मुहावरा वाक्यांश है।
- लोकोक्ति अपने अर्थ में पूर्ण होती है जबकि मुहावरे अपने अर्थ में पूर्ण नहीं हाेते।
- लोकोक्ति का प्रयोग वाक्य में ज्यों का त्यों किया जाता है जबकि मुहावरे में प्रयोग के आधार पर लिंग, वचन, क्रिया के अनुरूप परिवत र्न आ जाता है।
- लोकोक्ति लोक की उपज है जबकि मुहावरे भाषा की, साहित्य की उपज है।
लोकोक्तियां (कहावतें) व उनके अर्थ
क्र.सं. | लोकोक्ति | अर्थ |
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1 | अंधा क्या चाहे दो आंखे | बिना प्रयास, इच्छित वस्तु मिल जाना |
2 | अंधा बांटे रेवड़ी (सीरनी),फिर फिर अपने को दे | अनुदान व्यक्ति स्वजनों को ही लाभान्वित करता है |
3 | अंधी पीसे कुत्ता खाय | परिश्रम कोई करे, लाभ कोई अन्य पाए |
4 | अक्ल बड़ी कि भैंस | शारीरिक बल की तुलना में बौद्धिक बल श्रेष्ठ होता है। |
5 | अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता | अकेला व्यक्ति बड़ा काम नहीं कर सकता |
6 | अकेली मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है | एक दुष्ट, सारे वातावरण को दूषित कर देता है। |
7 | अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता हैं | अपने क्षेत्र में डरपोक भी वीरता प्रदर्शित करता है |
8 | अपना हाथ जगन्नाथ | स्वयं का कार्य स्वयं करने में ही भला हाेता है |
9 | अपनी पगड़ी अपने हाथ | अपना सम्मान अपने ही हाथ में होता है |
10 | अपनी जूती /मोगरी अपने ही सर | स्वयं द्वारा निर्मित विधान से स्वयं ही दण्डित होना |
11 | अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत | कार्य बिगड़ने पर पछताने से कोई लाभ नहीं |
12 | अरहर कि टट्टी गुजराती ताला | सामान्य वस्तु, विशेष सुरक्षा |
13 | अशर्फियाँ लूटें कोयलों पर मोहर | एक ओर फिजूल खर्ची दूसरी ओर पैसे पर रोक लगाना। |
14 | आ बैल मुझे मार, सिंग से नहीं तो पूँछ से मार | स्वयं अपने हाथाें मुसीबत मोल लेना। |
15 | आसमान से गिर खजूर में अटका | एक विपत्ति से बचकर दूसरी में फँसना |
16 | इमली के पत्ते पर दंड पेलना | किसी के बल भरोसे सोना/ निश्चिंत रहना। |
17 | एक अनार सौ बीमार | वस्तु कम, आवश्यकता अधिक |
18 | एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा | एक दोष तो पहले ही था दूसरा दोष और हो गया। |
19 | एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है | एक बुरा व्यक्ति साथ के सभी व्यक्तियों को, वातावरण को दूषित कर देता है। |
20 | ककड़ी चोर और फांसी कि सजा | साधारण अपराध के लिए कड़ा दण्ड देना |
21 | कबहुँ निरामिष होय न कागा | दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता |
22 | करमहीन खेती करें, बैल मरे या सूखा पड़े | दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता |
23 | काठ की हाँडी बार बार नहीं चढ़ती | कपटाचरण बार-बार सफल नहीं होता |
24 | कानी के ब्याह में रोड़े ही रोड़े | किसी कमी के कारण कार्य में बाधा पुनः पुनः आती है |
25 | का बरषा जब कृषि सुखाने | समय बीत जाने पर सहायता करना व्यर्थ है/अवसर बीतने पर कार्य करना व्यर्थ है। |
26 | कोऊ नप होई हमें का हानि | निर्लिप्तता, उदासीनता |
27 | कोयलों की दलाली में हाथ काले / मुँह काला | बुरे कार्य में साथ देने का फल भी बुरा ही मिलता है। |
28 | खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है | संगत का प्रभाव अवश्य होता है। |
29 | गधा क्या जाने गुलकंद का स्वाद | मूर्ख व्यक्ति गुणवान वस्तु के उपयोग और महत्व को नहीं समझ सकते। |
30 | घर आया नाग न पूजहिं, बाँबी पूजन जाहिं | स्वतः सुलभ सुअवसर का लाभ न उठाकर, बाद में उसकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना। |
31 | घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध | अपने स्थान पर गुणवान व्यक्ति के गुणों की पूछ न होना और अन्यत्र उसके गुणों की भारी पूछ होना। |
32 | घोड़ा घास से यारी करे तो खाये क्या | यदि श्रम का पारिश्रमिक न लिया जाए तो जीवन निर्वाह कैसे सम्भव है? |
33 | चंदन को चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ | गुणवान वस्तु, व्यक्ति मात्रा में कम भी महत्वपूर्ण होते हैं जबकि गुणहीन वस्तु, व्यक्ति मात्रा में अधिक हो तो भी व्यर्थ होते हैं। |
34 | चौबे जी गये छब्बे जी बनने, टुब्बेजी रह गये | लाभ प्राप्ति की आशा में हानि हो जाना। |
35 | छछूंदर के सिर में चमेली का तेल | अयोग्य व्यक्ति को मूल्यवान भेंट/अयोग्य को बड़ा सम्मान। |
36 | जिस थाली में खाये उसी में छेद करे | हित करने वाले का ही अहित करना। |
37 | जैसी तेरी घूघरी बैसे मेरे गीत | सामने वाले व्यक्ति के क्रिया-कलापों के अनुरूप ही स्वयं के क्रिया-कलाप बना लेना। |
38 | जो गरजते हैं वे बरसते नहीं | जो डींग हाँकते हैं वे कार्य कर नहीं सकते। |
39 | तेते पाँव पसरिए जेती लांबी सौर | अपनी सामर्थ्य के अनुरूप ही व्यक्ति को कार्य करना चाहिए। |
40 | थोड़ी पूँजी धनी को खाय | अपर्याप्त पूँजी से आरम्भ किए गए व्यापार में घाटा ही होता है। |
41 | दान की बछियाँ के दांत नहीं गिने जाते | मुफ्त में मिली वस्तु के गुण-दोष नहीं देखे जाते। |
42 | नमाज छोड़ने गये, रोज़े गले पड़ गये | लाभ के स्थान पर हानि हाेना/छोटी मुसीबत से छुटकारा पाने के प्रयास में बड़ी मुसीबत आ जाना। |
43 | नाम बड़े और दर्शन छोटे | थोथी शान |
44 | नौ दिन चले अढ़ाई कोस | बहुत धीमी गति से कार्य करना। |
45 | पूत के पाँव तो पालने में ही दिख जाते हैं | योग्य जनों के लक्षण आरम्भ में ही प्रकट हो जाते हैं। |
46 | फिसल पड़े तो हर हर गंगा | असफलता को भी अन्य बहाने बनानकर छिपाते हुए श्रेष्ठता सिद्ध करना। |
47 | बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद | मूर्ख व्यक्ति गुणपूर्ण वस्तु के महत्व को नहीं समझ सकता। |
48 | भेड़ पर ऊन कोई नहीं छोड़ता | कमजोर का तो हर कोई शोषण करता है। |
49 | मन मन भावे मूँड हिलावे | मन में भाना, ऊपर से मनाही करना। |
50 | मुँह में आया पताशा किसी को बुरा नहीं लगता | अनायास प्राप्त वस्तु किसी को त्याजय नहीं होती। |
51 | हजारों टाँकिया सहकर/हथौड़ा खाकर महादेव बनते हैं | कष्ट सहकर यश, मान मिलता है। |
52 | हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और | अन्तर-बाह्य व्यक्तित्व और कृतित्व में अन्तर होना। |
53 | होनहार बिरवान के होते चीकने पात | योग्य जनों के लक्षण आरम्भ में ही प्रकट हो जाते हैं। |
यहाँ विगत वर्षों में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछी गयी लोकोक्तियों (कहावतों) को संकलित किया गया हैं। जो कि समय के साथ और अपडेट कर दी जाएंगी, जिससे आप अपनी तैयारी का स्तर और बेहतर कर पाएंगे। धन्यवाद !
प्रत्यय (Pratyay) एवं इसके भेद
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