लोकोक्तियाँ लोक जीवन के दीर्घकालीन अनुभव का समृद्ध कोश होती हैं। लाेकोक्तियों में लोक जीवन के विविध अनुभव समाहित होते हैं, इसलिए वे बहुत विस्तृत तथ्य और सत्य को कम से कम शब्दों में प्रभावाेत्पादक ढंग से सहज ही व्यक्त कर देती हैं।
वे कथन, जो जनजीवन में (लोक जीवन में) दीर्घकालीन अनुभव के उपरान्त, किसी विशिष्ट अर्थ और परिस्थिति में प्रयुक्त होने लगते हैं, उन्हें कहावतें या लोकोक्तियां कहते हैं।
विषय सूची:
50+ लोकोक्तियां, उनके अर्थ एवं वाक्य में प्रयोग
क्रम संख्या | लोकोक्ति (Lokokti In Hindi) | लोकोक्ति का अर्थ (Lokokti Ka Arth) | लोकोक्ति का वाक्य में प्रयोग (Lokokti Vakya Prayog) |
1 | अंधा क्या चाहे दो आंखें | बिना प्रयास, इच्छित वस्तु मिल जाना | राजेश को लॉटरी में कार मिली, यह तो अंधा क्या चाहे दो आंखें जैसा हो गया। |
2 | अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को दे | अनुदान व्यक्ति स्वजनों को ही लाभान्वित करता है | नेता ने सभी ठेके अपने रिश्तेदारों को दिए, यह तो अंधा बांटे रेवड़ी है। |
3 | अंधी पीसे कुत्ता खाय | परिश्रम कोई करे, लाभ कोई और पाए | मोहन ने मेहनत की, लेकिन प्रमोशन किसी और को मिल गया, अंधी पीसे कुत्ता खाय हो गया। |
4 | अक्ल बड़ी कि भैंस | शारीरिक बल से बौद्धिक बल श्रेष्ठ होता है | समस्या का हल ताकत से नहीं, बुद्धि से होगा, क्योंकि अक्ल बड़ी कि भैंस। |
5 | अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता | अकेला व्यक्ति बड़ा काम नहीं कर सकता | यह प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है, इसे पूरा करने के लिए टीम चाहिए, क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। |
6 | अकेली मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है | एक बुरा व्यक्ति पूरे वातावरण को दूषित कर देता है | उस कर्मचारी की बुरी आदतें पूरे ऑफिस के माहौल को बिगाड़ रही हैं, अकेली मछली सारे तालाब गंदा कर देती है। |
7 | अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है | अपने क्षेत्र में डरपोक भी वीरता प्रदर्शित करता है | वह अपने मोहल्ले में तो बहुत बहादुर बनता है, क्योंकि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। |
8 | अपना हाथ जगन्नाथ (RTET L-2 2011) | स्वयं का कार्य स्वयं करने में ही भला होता है | दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय अपना काम खुद करो, अपना हाथ जगन्नाथ। |
9 | अपनी पगड़ी अपने हाथ | अपना सम्मान अपने ही हाथ में होता है | अगर तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारा सम्मान करें, तो इसे खुद बनाए रखो, अपनी पगड़ी अपने हाथ। |
10 | अपनी जूती अपने ही सिर | स्वयं द्वारा बनाए गए नियम से स्वयं को नुकसान पहुंचाना | गलत नियम बनाकर खुद फंस गए, यह तो अपनी जूती अपने ही सिर जैसा है। |
11 | अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत | कार्य बिगड़ने पर पछताने से कोई लाभ नहीं | समय पर पढ़ाई नहीं की, अब रिजल्ट खराब हो गया, अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। |
12 | अरहर की टट्टी गुजराती ताला | सामान्य वस्तु पर विशेष सुरक्षा | मामूली अलमारी के लिए इतनी महंगी चाबी बनवाई, यह तो अरहर की टट्टी गुजराती ताला हो गया। |
13 | अशर्फियाँ लूटें कोयलों पर मोहर | एक ओर फिजूल खर्ची और दूसरी ओर बचत | उसने शादी में लाखों खर्च किए, लेकिन मेहमानों को सस्ता खाना खिलाया, अशर्फियाँ लूटें कोयलों पर मोहर। |
14 | आ बैल मुझे मार | स्वयं अपने हाथों मुसीबत मोल लेना | बिना सोचे-समझे करार कर लिया, अब फंस गए, यह तो आ बैल मुझे मार हो गया। |
15 | आसमान से गिर खजूर में अटका | एक विपत्ति से बचकर दूसरी में फँसना | कर्ज़ चुकाया तो नया कर्ज़ चढ़ गया, यह तो आसमान से गिर खजूर में अटका। |
16 | इमली के पत्ते पर दंड पेलना | दूसरों पर निर्भर रहना | काम खुद करो, दूसरों पर भरोसा मत करो, यह तो इमली के पत्ते पर दंड पेलना हो गया। |
17 | एक अनार सौ बीमार | वस्तु कम और आवश्यकता अधिक | सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन बहुत आते हैं, यह तो एक अनार सौ बीमार जैसा है। |
18 | एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा | एक बुराई के बाद दूसरी बुराई | पहले बारिश से फसल खराब हुई, अब कीड़े लग गए, एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा। |
19 | एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है | एक बुरा व्यक्ति पूरे समूह को दूषित कर देता है | एक गलत इंसान पूरी टीम का माहौल खराब कर रहा है, एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है। |
20 | ककड़ी चोर और फांसी की सजा | साधारण अपराध के लिए कड़ा दंड देना | छोटी गलती के लिए इतनी बड़ी सजा! यह तो ककड़ी चोर और फांसी की सजा हो गई। |
21 | कबहुँ निरामिष होय न कागा | दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता है | वह कितने भी अवसर पाए, लेकिन अपनी आदतें नहीं बदलता, यह तो कबहुँ निरामिष होय न कागा जैसी बात है। |
22 | करमहीन खेती करें, बैल मरे या सूखा पड़े | भाग्यहीन व्यक्ति को हर समय बाधा आती है | मेहनत के बावजूद सफलता न मिलना, करमहीन खेती करें, बैल मरे या सूखा पड़े। |
23 | काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती | कपटाचरण बार-बार सफल नहीं होता | धोखे से किसी को जीतना हर बार संभव नहीं, क्योंकि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। |
24 | कानी के ब्याह में रोड़े ही रोड़े | किसी कमी के कारण कार्य में बाधा बार-बार आती है | कम संसाधनों के कारण काम में बार-बार रुकावट आ रही है, कानी के ब्याह में रोड़े ही रोड़े। |
25 | का बरषा जब कृषि सुखाने | समय बीतने पर सहायता करना व्यर्थ है | अब मदद करने का क्या फायदा, जब समस्या समाप्त हो चुकी है, का बरषा जब कृषि सुखाने। |
26 | कोऊ नप होई हमें का हानि | निर्लिप्तता और उदासीनता का भाव | उसके जाने से मुझे फर्क नहीं पड़ता, कोऊ नप होई हमें का हानि। |
27 | कोयलों की दलाली में हाथ काले | बुरे कार्य में साथ देने का फल भी बुरा ही होता है | गलत कंपनी में काम करने से मेरी भी बदनामी हो गई, कोयलों की दलाली में हाथ काले। |
28 | खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है | संगत का प्रभाव अवश्य होता है | बच्चों पर उनके दोस्तों का गहरा असर होता है, खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। |
29 | गधा क्या जाने गुलकंद का स्वाद | मूर्ख व्यक्ति गुणवान वस्तु का महत्व नहीं समझता | उसे इतनी शानदार गाड़ी दी, लेकिन वह इसे संभाल नहीं सकता, गधा क्या जाने गुलकंद का स्वाद। |
30 | घर आया नाग न पूजें, बाँबी पूजने जाएं | सुलभ अवसर का लाभ न उठाकर, बाद में उसके लिए प्रयास करना | उसने घर बैठे नौकरी छोड़ दी, अब अन्य जगह जाकर संघर्ष कर रहा है, घर आया नाग न पूजें, बाँबी पूजने जाएं। |
31 | घर का जोगी जोगना, आन गांव का सिद्ध | अपने स्थान पर गुणी व्यक्ति की कद्र न होना | अपने गांव में उसे कोई पहचानता नहीं, लेकिन शहर में वह प्रसिद्ध है, घर का जोगी जोगना, आन गांव का सिद्ध। |
32 | घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या | श्रम का पारिश्रमिक न लेने पर जीवन निर्वाह कैसे संभव है | अगर किसान अनाज मुफ्त में दे तो वह खुद भूखा रहेगा, घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या। |
33 | चंदन को चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ | गुणवान वस्तु मात्रा में कम भी महत्वपूर्ण होती है | थोड़ी सी चंदन की लकड़ी भी अनमोल है, लेकिन साधारण लकड़ी का ढेर व्यर्थ है, चंदन को चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ। |
34 | चौबे जी गए छब्बे जी बनने, दूबे जी रह गए | लाभ की आशा में हानि हो जाना | उसने बड़ा पद पाने की कोशिश की, लेकिन नौकरी ही खो दी, चौबे जी गए छब्बे जी बनने, दूबे जी रह गए। |
35 | छछूंदर के सिर में चमेली का तेल | अयोग्य व्यक्ति को मूल्यवान वस्तु देना | उसे इतनी महंगी घड़ी क्यों दी, यह तो छछूंदर के सिर में चमेली का तेल है। |
36 | जिस थाली में खाएं, उसी में छेद करें | हित करने वाले का ही अहित करना | जिसने तुम्हारी मदद की, तुमने उसी को धोखा दिया, जिस थाली में खाएं, उसी में छेद करें। |
37 | जैसी तेरी घूघरी, वैसे मेरे गीत | क्रिया-कलापों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया देना | अगर वह गुस्से में बात करता है, तो मैं भी वैसे ही जवाब दूंगा, जैसी तेरी घूघरी, वैसे मेरे गीत। |
38 | जो गरजते हैं वे बरसते नहीं | डींग हांकने वाले लोग अक्सर काम नहीं करते | वह सिर्फ बड़े-बड़े दावे करता है, लेकिन कुछ करता नहीं, जो गरजते हैं वे बरसते नहीं। |
39 | तेते पांव पसारिए, जेती लंबी सौर | अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही काम करना चाहिए | अपनी आमदनी के हिसाब से खर्च करो, तेते पांव पसारिए, जेती लंबी सौर। |
40 | थोड़ी पूंजी धनी को खाए | अपर्याप्त संसाधनों से काम शुरू करना असफल होता है | बिना तैयारी के व्यापार शुरू किया और घाटा हुआ, थोड़ी पूंजी धनी को खाए। |
41 | दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते | मुफ्त में मिली वस्तु के दोष नहीं देखे जाते | उसे उपहार में पुराना मोबाइल दिया और उसने शिकायत की, दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते। |
42 | नमाज छोड़ने गए, रोज़े गले पड़ गए | छोटी मुसीबत से बचने के प्रयास में बड़ी मुसीबत आ जाना | उसने जल्दी में काम छोड़ा और समस्या बढ़ गई, नमाज छोड़ने गए, रोज़े गले पड़ गए। |
43 | नाम बड़े और दर्शन छोटे | सिर्फ दिखावा करना | होटल की कीमतें तो बहुत ज्यादा हैं, लेकिन खाना साधारण है, नाम बड़े और दर्शन छोटे। |
44 | नौ दिन चले अढ़ाई कोस | बहुत धीमी गति से कार्य करना | परियोजना छह महीने में पूरी होनी थी, लेकिन अभी तक शुरू नहीं हुई, नौ दिन चले अढ़ाई कोस। |
45 | पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं | गुणी व्यक्ति के लक्षण प्रारंभ में ही दिख जाते हैं | उसकी छोटी उम्र में ही काबिलियत दिखने लगी, पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। |
46 | फिसल पड़े तो हर-हर गंगा | असफलता को बहाने बनाकर छिपाना | गलती अपनी थी, लेकिन वह भगवान को दोष दे रहा है, फिसल पड़े तो हर-हर गंगा। |
47 | बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद | मूर्ख व्यक्ति गुणवान वस्तु का महत्व नहीं समझता | उसे इतनी अच्छी किताब दी, लेकिन वह पढ़ने की परवाह नहीं करता, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। |
48 | भेड़ पर ऊन कोई नहीं छोड़ता | कमजोर व्यक्ति का सभी शोषण करते हैं | गरीब किसान को सबने लूटा, यह तो भेड़ पर ऊन कोई नहीं छोड़ता। |
49 | मन मन भावे मूंड हिलावे | ऊपर से सहमति देना, लेकिन मन में कुछ और सोचना | उसने मीटिंग में तो हामी भर दी, लेकिन काम करने का मन नहीं था, मन मन भावे मूंड हिलावे। |
50 | मुंह में आया पताशा किसी को बुरा नहीं लगता | अनायास प्राप्त वस्तु को कोई नकारता नहीं | अचानक बोनस मिला, और सभी खुश हो गए, मुंह में आया पताशा किसी को बुरा नहीं लगता। |
51 | हजारों टांकियां सहकर महादेव बनते हैं | कष्ट सहने से ही सफलता मिलती है | मेहनत और संघर्ष से ही उसे यह मुकाम मिला, हजारों टांकियां सहकर महादेव बनते हैं। |
52 | हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और | बाहर और भीतर के स्वरूप में अंतर | उसकी बातें कुछ और होती हैं, लेकिन काम कुछ और, हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और। |
53 | होनहार बिरवान के होते चिकने पात | गुणी व्यक्ति के लक्षण प्रारंभ में ही प्रकट हो जाते हैं | बचपन से ही वह बहुत प्रतिभाशाली था, होनहार बिरवान के होते चिकने पात। |
FAQs:
प्रश्न: लोकोक्ति किसे कहते हैं? लोकोक्ति की परिभाषा या लोकोक्ति क्या होती है ?
उत्तर : हिन्दी में लोकोक्ति (Proverb) एक प्रकार की कहावत होतीं है, जो समाज में प्रचलित होते है और जिसमें किसी विशेष अनुभव, ज्ञान या नैतिक शिक्षा को संक्षेप में प्रस्तुत किया जाता है। यह आमतौर पर एक छोटे वाक्य या वाक्यांश के रूप में होती है और इसका उपयोग किसी विशेष स्थिति या संदर्भ में किया जाता है।
उदाहरण के लिए, “नाच न जाने आँगन टेढ़ा” एक लोकोक्ति है, जिसका अर्थ है कि अपनी कमी को छुपाने के लिए दूसरों को दोष देना।
प्रश्न: लोकोक्ति किस भाषा का शब्द है?
उत्तर : लोकोक्ति संस्कृत भाषा का शब्द है। यह शब्द “लोक” (जनता) और “उक्ति” (कहना) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है जनता द्वारा कही गई बात या कहावत।
प्रश्न: लोकोक्ति को अन्य किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर : लोकोक्ति को कहावत या प्रवचन के नाम से भी जाना जाता है। यह समाज में प्रचलित ज्ञान और अनुभव को संक्षेप में प्रस्तुत करने का एक तरीका है।
प्रश्न: लोकोक्ति और मुहावरे में अंतर बताइए ?
उत्तर : लोकोक्ति और मुहावरे दोनों ही हिंदी भाषा के महत्वपूर्ण अंग हैं, लेकिन इनके उपयोग और अर्थ में अंतर होता है:

लोकोक्ति (Proverb) | मुहावरा (Idiom) |
वाक्य होती हैं। | वाक्यांश होतें हैं। |
अर्थ में पूर्ण | अर्थ में पूर्ण नहीं |
प्रयोग वाक्य में ज्यों का त्यों | प्रयोग के आधार पर लिंग, वचन, क्रिया के अनुरूप परिवत र्न |
लोक की उपज (सामान्य जनता) | भाषा की, साहित्य की उपज |
“मन मन भावे मूंड हिलावे” – ऊपर से सहमति देना, लेकिन मन में कुछ और सोचना। | “आसमान से बातें करना” – बहुत ऊँचा होना। |
प्रश्न: लोकोक्ति और मुहावरो में समानता एवं असमानता स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
समानता
- मुहावरों की भाँति कहावतें भी भाषा को रोचक व प्रभावोत्पादक बनाती हैं।
- मुहावरे व कहावतें दोनों ही साधरण अर्थ से भिन्न विलक्षण अर्थ का बोध कराते हैं।
असमानता
- लोकोक्ति वाक्य है जबकि मुहावरा वाक्यांश है।
- लोकोक्ति अपने अर्थ में पूर्ण होती है जबकि मुहावरे अपने अर्थ में पूर्ण नहीं हाेते।
- लोकोक्ति का प्रयोग वाक्य में ज्यों का त्यों किया जाता है जबकि मुहावरे में प्रयोग के आधार पर लिंग, वचन, क्रिया के अनुरूप परिवत र्न आ जाता है।
- लोकोक्ति लोक की उपज है जबकि मुहावरे भाषा की, साहित्य की उपज है।

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