समास (SAMAS): भेद एवं 500+ उदाहरण

समास (Samas) शब्द का अर्थ होता है –“संक्षेप “। दो या दो से अधिक शब्दों के मेल/संयोग को समास कहते हैं। समास में संक्षेप में कम से कम शब्दों द्वारा बड़ी से बड़ी और पूर्ण बात कही जाती है।

जैसे:- ग्राम को गया हुआ में चार शब्दों के प्रयोग के स्थान पर “ग्रामगत” एक समस्त शब्द प्रयोग में लिया जा सकता है।

समास का उद्भव ही समान अर्थ को कम से कम अर्थ में लिखने कि प्रवर्ती के कारण हुआ है। इस प्रकार दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से विभक्ति चिन्हों के लोगों के कारण जो नवीन शब्द बनते हैं, उन्हें सामासिक या समस्त पद कहते हैं।

सामासिक शब्दों का संबंध व्यक्त करने वाले, विभक्ति चिह्नों आदि के साथ प्रकट करने अथवा लिखने की रीति को विग्रह कहते हैं। जैसे:- “धनसंपन्न” समस्त पद का विग्रह ‘धन से संपन्न’, “रसोईघर” समस्त पद का विग्रह ‘रसोई के लिए घर’

समस्त पद में मुख्यतः दो पद होते हैं – पूर्वपद व उत्तरपद। पहले वाले पद को “पूर्वपद” व दूसरे पद को “उत्तरपद” कहते हैं।

समास के भेद या प्रकार

मुख्यतः समास के 4 भेद होते हैं।

जिस समास में पहला शब्द प्रायः प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं; जिस समास में दूसरा शब्द प्रधान रहता है, उसे तत्पुरुष कहते हैं। जिसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं, वह द्वन्द्व कहलाता हैं और जिसमें कोई भी प्रधान नहीं होता उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं।

तत्पुरुष समास के पुनः दो अतिरिक्त किन्तु स्वतंत्र भेद स्वीकार किए गए हैं – कर्मधारय समास एवं द्विगु समास

विवेचन की सुविधा के लिए हम समास निम्नलिखित छह प्रकारों के अंतर्गत पढ़ते हैं-

  1. अव्ययीभाव समास (Avyayibhav Samas)
  2. तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)
  3. कर्मधारय समास (Karmadharaya Samas)
  4. द्विगु समास (Dvigu Samas)
  5. द्वंद समास (Dvand Samas)
  6. बहुब्रीहि समास (Bahubrihi Samas)

अव्ययीभाव समास

अव्ययीभाव समास में पहला पद प्रधान होता है एवं परिवर्तनशीलता का भाव होता है। और अव्यय पद का रूप लिंग, वचन, कारक में नहीं बदलता वह सदैव एकसा रहता है।

समस्त पद विग्रह
यथाशक्तिशक्ति के अनुसार
यथासमयसमय के अनुसार
प्रतिक्षणहर क्षण
यथासंभवजैसा संभव हो
आजीवनजीवन भर
भरपेटपेट भरकर
आजन्मजन्म से लेकर
आमरणमरण तक
प्रतिदिनहर दिन
बेखबरबिना खबर के

अपवाद: हिन्दी के कई ऐसे समस्त पद जिनमें कोई शब्द अव्यय नहीं होता परंतु समस्त पद अव्यय कि तरह प्रयुक्त होता है, वहाँ भी अव्ययीभाव समास माना जाता है।

घर-घरघर के बाद घर
रातों-रातरात ही रात में

तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समास में पहला पद गौण तथा दूसरा पद प्रधान होता है। इसमे कारक के विभक्ति चिन्हों का लोप हो जाता है (कर्ता व सम्बोधन कारक को छोड़कर) इसलिए 6 कारकों के आधार पर इसके भी 6 भेद होतें हैं।

कर्म तत्पुरुष समास

‘को’ विभक्ति चिन्हों का लोप

समस्त पद विग्रह
ग्रामगतग्राम को गया हुआ
पदप्राप्तपद को प्राप्त
सर्वप्रियसर्व (सभी) को प्रिय
यशप्राप्तयश को प्राप्त
शरणागतजन्म से लेकर

करण तत्पुरुष समास

‘से’ विभक्ति चिन्हों का लोप

समस्त पद विग्रह
भावपूर्णभाव से पूर्ण
बाणाहतबाण से आहत
हस्तलिखितहस्त से लिखित
बाढ़पीड़ितबाढ़ से पीड़ित

संप्रदान तत्पुरुष समास

‘के लिए ‘ विभक्ति चिन्ह का लोप

समस्त पद विग्रह
गुरुदक्षिणागुरु के लिए दक्षिणा
राहखर्चराह के लिए खर्च
बालामृतबालकों के लिए अमृत
युद्धभूमियुद्ध के लिए भूमि
विद्यालयविद्या के लिए आलय

अपादान तत्पुरुष समास

‘से’ पृथक या अलग के लिए चिन्ह का लोप

समस्त पद विग्रह
देशनिकालादेश से निकाला
बंधनमुक्तबंधन से मुक्त
पथभ्रष्टपथ से भ्रष्ट
ऋणमुक्तऋण से मुक्त

संबंध तत्पुरुष समास

‘का’, ‘के’, ‘कि’ विभक्ति चिन्हों का लोप

समस्त पद विग्रह
गंगाजलगंगा का जल
नगरसेठनगर का सेठ
राजमाताराजा की माता
जलधाराजल की धारा
मतदातामत का दाता

अधिकरण तत्पुरुष समास

‘में’, ‘पर’ विभक्ति चिन्हों का लोप

समस्त पद विग्रह
जलमग्नजल में मग्न
आपबीतीआप पर बीती
सिरदर्दसिर में दर्द
घुड़सवारघोड़े पर सवार

कर्मधारय समास

कर्मधारय समास में पहले और दूसरे पद में विशेषण, विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध होता हैं, जैसे-

समस्त पद
विशेषण विशेष्यविग्रह
महापुरुषमहान है जो पुरुष
पीताम्बरपीला है जो अम्बर
प्राणप्रियप्रिय है जो प्राणों को
उपमान-उपमेयविग्रह
चंद्रवदनचंद्रमा के समान वदन (मुँह)
कमलनयनकमल के समान नयन
विद्याधनविद्या रूपी धन
भवसागरभाव रूपी सागर
मृगनयनीमृग के समान नेत्रवाली

द्विगु समास

द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक तथा दूसरा पद प्रधान होता है।

समस्त पद विग्रह
नवरत्ननौ रत्नों का समूह
सप्ताहसात अहतों का समूह
त्रिमूर्तितीन मूर्तियों का समूह
शताब्दीसौ अब्दों (वर्षों) का समूह
त्रिभुजतीन भुजाओं का समूह
पंचरात्रपंच (पाँच) रात्रियों का समाहार

अपवाद: कुछ समस्त पदों में शब्द के अंत में संख्यावाचक शब्दान्श आता है, जैसे-

पक्षद्वयदो पक्षों का समूह
लेखकद्वयदो लेखकों का समूह
संकलनत्रयतीन संकलनों का समूह

द्वंद समास

द्वंद समास में दोनों पद समान रूप से प्रधान होतें हैं तथा योजक चिन्ह द्वारा जुड़ें होतें हैं। समास विग्रह करने पर और, या, अथवा, एवं आदि शब्द लगते हैं।

समस्त पद विग्रह
रात-दिनरात और दिन
सीता-रामसीता और राम
दाल-रोटीदाल और रोटी
माता-पिताघोड़े पर सवार
आयात-निर्यातआयात और निर्यात
हानि-लाभहानि या लाभ
आना-जानाआना और जाना

बहुब्रीहि समास

बहुब्रीहि समास में पूर्वपद व उत्तरपद दोनों ही गौण हों और अन्यपद प्रधान हो और उसके शाब्दिक अर्थ को छोड़कर एक नया अर्थ निकाला जाता है, वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।

समस्त पद विग्रह
लंबोदरलंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेश
घनश्यामघन (अंधेरे) जैसा श्याम अर्थात् कृष्ण
दशाननदश आनन हैं जिसके अर्थात् रावण
गजाननगज के समान आनन वाला अर्थात् गणेश
त्रिलोचनतीन है लोचन जिसके अर्थात् शिव
हँसवाहिनीहंस है वहाँ जिसका अर्थात् सरस्वती
महावीरमहान है जो वीर अर्थात् हनुमान
दिगम्बरदिशा ही है अम्बर जिसका अर्थात् शिव
चतुर्भुजचार भुजायें हैं जिसके अर्थात् विष्णु

कर्मधारय और बहुब्रीहि समास में अंतर

कर्मधारय समास में दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य तथा उपमान-उपमेय का संबंध होता है लेकिन बहुब्रीहि समास में दोनों पदों का अर्थ प्रधान न होकर ‘अन्यार्थ’ प्रधान होता है।

जैसे- मृगनयन-मृग के समान नयन (कर्मधारय) तथा नीलकंठ- नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव -अन्यार्थ लिया गया है (बहुब्रीहि समास)

अंतरकर्मधारय समासबहुब्रीहि समास
संबंधविशेषण-विशेष्य एवं उपमान-उपमेय का संबंधदोनों पदों का अर्थ प्रधान न होकर ‘अन्यार्थ’ प्रधान
उदाहरणमृगनयन (मृग के समान नयन)नीलकंठ (नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव)
व्याख्यामृगनयन में मृग (उपमान) और नयन (उपमेय) का संबंध होता हैनीलकंठ में नील और कंठ का संबंध शिव से होता है, जिसमें शब्दों का सीधा अर्थ प्रधान नहीं है, बल्कि उनका सांकेतिक अर्थ होता है।

बहुब्रीहि एवं द्विगु समास में अंतर

द्विगु समास में पहला शब्द संख्यावाचक होता है और समस्त पद समूह का बोध कराता है लेकिन बहुब्रीहि समास में पहला पद संख्यावाचक होने पर भी समस्त पद से समूह का बोध ना हॉकत अन्य अर्थ को बोध होता है।

जैस- चौराहा अर्थात् चार राहों का समूह (द्विगु समास)

चतुर्भुज-चार भुजायें हैं जिसके अर्थात् विष्णु -अन्यार्थ (बहुब्रीहि समास)

अंतरद्विगु समासबहुब्रीहि समास
संबंधपहला शब्द संख्यावाचक होता है और समस्त पद समूह का बोध कराता हैपहला पद संख्यावाचक होने पर भी समस्त पद से समूह का बोध न होकर अन्य अर्थ को बोध होता है
उदाहरणचौराहा (चार राहों का समूह)चतुर्भुज (चार भुजायें हैं जिसके अर्थात् विष्णु)
व्याख्याचौराहा में चार और राहों का समूह बोध होता हैचतुर्भुज में चार भुजायें होने का बोध विष्णु से होता है, जिसमें शब्दों का सांकेतिक अर्थ प्रधान होता है।

संधि और समास में अंतर

संधि दो वर्णों या ध्वनियों का मेल होता है। पहले शब्द कि अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द कि आरंभिक ध्वनि में परिवर्तन आ जाता है, जैसे – ‘लंबोदर’ में ‘लंबा’ शब्द की अंतिम ध्वनि ‘आ’ और ‘उदर’ शब्द की आरंभिक ध्वनि ‘उ’ के मेल से ‘ओ’ में परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार दो या दो से अधिक शब्दों की कमी न होकर ध्वनियों का मेल होता है।

किन्तु समास में ‘लंबोदर’ का अर्थ लंबा है उदर (पेट) जिसका शब्द समूह बनाता है। अतः समास में मूल शब्दों का योग होता है जिसका उद्देश्य पद में संक्षिप्तता लाना है।

अंतरसंधिसमास
परिभाषादो वर्णों या ध्वनियों का मेलदो या दो से अधिक शब्दों का योग
परिवर्तनपहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की आरंभिक ध्वनि में परिवर्तनमूल शब्दों का संक्षिप्तता के लिए योग
उदाहरण‘लंबोदर’ में ‘लंबा’ के ‘आ’ और ‘उदर’ के ‘उ’ से ‘ओ’ में परिवर्तन‘लंबोदर’ का अर्थ लंबा है उदर (पेट) जिसका
लक्ष्यध्वनियों का मेलपद में संक्षिप्तता लाना

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